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उत्तराखंड की सिद्ध पीठ देवियों के दर्शन से मिलती है शांति, होगी हर मनोकामना पूर्ण

उत्तराखंड: भौन देवी :- भौगौलिक रुप में तीन जिलों पौड़ी , नैनीताल व अल्मौडा की सीमा से लगा मां भुवनेश्वरी ( भौन) का यह सिद्ध पीठ अल्मोड़ा जिले की पल्ला सल्ट पट्टी के ग्रा म भौन के ऊंचे शिखर पर स्थित है जो नदियों‌ बदनगढ ( पाटली) व देवलगढ़ के मध्य स्थित होने के साथ ही पौड़ी व अल्मोड़ा की आठ ग्राम सभाओं से युक्त है । सिद्ध पीठ के दक्षिण में उक्त दोनों नदियों व रामगंगा ( पश्चिमी ) का संगम मरचुला बैंड के समीप है जहां से सिद्धपीठ की दूरी १३ किमी है । इसके पश्चिम में पौड़ी गढ़वाल का नैनीडांडा क्षेत्र है जहां से कालागढ़ बांध साफ दिखाई देता है साथ ही इसी दिशा में मंदिर की नीचली और उत्तराखंड का प्रसिद्ध शिवालय सल्ट महादेव है जो नदियों‌ बदनगढ ,देवलगढ़ व हेंगवा नदियों के संगम पर स्थित हैभौन नदि के उत्तर में गांव रुन्डाली में बद्री नाथ मंदिर,गुजडूगढी व धुमाकोट की दीवादेवी की ऊंची पहाड़ी हैं जो प्रसिद्ध वीरांगना तीलू रौतेली का गढ़ माना जाता है । इस तरह यह सिद्ध पीठ अत्यंत रमणीक स्थल है प्रा तो यहां से सूर्योदय का दिरषय दर्शनीय है ।बैसाखी में यहां मेला लगता है । मंदिर में विश्राम हेतु धर्म शाला व सत्संग भवन है ।


सुरकंडा देवी :-– यह गढ़वाल का प्रसिद्ध सिद्ध पीठ है । पर्वत रानी मंसूरी के समीप होने से पर्यटन विशेषांकों , पर्यटन गाइडों आदि में उल्लेख होने से यह उत्तराखंड के पर्यटन मानचित्र पर अंकित है । सूरकंडा सिद्धपीठ मसूरी टिहरी मार्ग पर मसूरी से ३२ किमी दूर कद्दू खाल नामक स्थान से २ किमी उपर टिहरी गढ़वाल की बमूंड पट्टी में लगभग १०००० फुट की उंचाई पर स्थित है इसकी यात्रा सुगम होने से मैदानी क्षेत्रों के लोग भी श्रद्धा पूर्वक करते हैं । स्कन्द पुराण अंतर्गत केदारखंड में अध्याय १३३ से १३५ मध्य वर्णित है कि देवराज इन्द्र ने यहां आपदाओं से रक्षा हेतु सुरेश्वरी देवी की आराधना” सुरकुट पर्वत” पर की थी जिससे ईसका एक नाम सुरेश्वरी भी है ।साथ ही कुछ लोग ये भी मानते हैं कि यहां सती का कंठ गिरा था जिससे ईसका नाम सुरकंठा पड़ा जो बाद में सूरकंडा हो गया । सिद्धपीठ का वर्तमान स्वरूप काफी भव्य व आकर्षक है साथ ही ईसके चारों और की छटा अवर्णीय है टिहरी जिले की सिद्धपीठ कुंजापुरी, चंद्रबदनी के अतिरिक्त हरिद्वार रिषिकेश की आकर्षक गंगा घाटी के अतिरिक्त

दूनघाटी का विहंगम दृश्य भी यहां से दिखता है , सूरकंडा का पर्वत एक प्रकार से देखा जाए तो दूनघाटी के गंगा व यमूना क्षेत्रों के जल विभाजक का कार्य करता है ईसके बाई ओर की नदियां गदेरे रिस्पना , सोंग ,रेह , सूसवा आदि गंगा में व दाहिनी ओर की आसन , पूर्वी टोंस ,सीतला आदि यमूना में मिलते हैं । मंदिर के पूजारी पट्टी बमूंड के लेखवार ब्रा मण हैं मंदिर में धर्मशाला है जबकि भौजन व्यवस्था कद्दू खाल में उपलब्ध है । नोट : वैसै उत्तराखंड में स्थानीय आधार पर ग्रामीण समीप स्थित देवालय व शक्ति सिद्धपीठ होने से लोगों ने उन्हें कूलदेवता व कूलदेवी माना है ।

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