उत्तरप्रदेश

मुख्यमंत्री योगी आद‍ित्‍यनाथ के निर्देश पर प्रमुख सचिव न्याय ने वादधारकों के इंटरव्यू लेने का सिलसिला शुरू

मुख्‍यमंत्री योगी आद‍ित्‍यनाथ ने व‍िभागों के बंटवारे के दौरान कई महत्‍वपूर्ण व‍िभागों को अपने पास रखा। ज‍िससे वह उन व‍िभागों पर नजर रखने के साथ ही वहां कुछ सुधार कर सकें। कुर्सी संभालने के बाद से ही सीएम योगी इस कार्य में जुट गए है।

न्याय विभाग के मंत्री के तौर पर वह सक्रिय हैं। मुख्‍यमंत्री के न‍िर्देश पर अयोग्‍य सरकारी वकीलों के चिन्हित करने के ल‍िए स्‍क्रीनिंग शुरु की गई है। आमतौर पर कानूनी पेचीदगियों से भरी मोटी फाइलों में उलझे रहने वाले प्रमुख सचिव न्याय एवं विधि परामर्शी प्रमोद कुमार श्रीवास्तव के सचिवालय स्थित कार्यालय कक्ष का नजारा मंगलवार शाम बदला हुआ था।

वह इंटरव्यू ले रहे थे और उनके सामने एक-एक कर आ रहे थे हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में सरकार की ओर से नियुक्त किये गए वादधारक। रिट कितने प्रकार की होती हैं? भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 क्या है? कानून के क्षेत्र में आपका कितना अनुभव है? आप किसके माध्यम से आए? उनकी ओर से लगाई गई ऐसे सवालों की झड़ी उन वादधारकों को असहज भी कर रही थी जिनकी स्क्रीनिंग वह त्वरित साक्षात्कार के जरिये कर रहे थे।

मंगलवार को उन्होंने ऐसे 51 वादधारकों का इंटरव्यू किया। इसकी जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि सरकारी वकीलों की लचर पैरवी से अदालत में सरकार और न्याय विभाग की लगातार किरकिरी हो रही है। सरकार को लगातार शिकायतें मिल रही थीं कि सरकारी वकीलों और वादधारकों का काम ठीक नहीं है।

उनकी ओर से प्रतिशपथपत्र समय से दाखिल नहीं किये जा रहे हैं। इसकी वजह से सरकार के वरिष्ठ अफसर अकसर अदालत में तलब कर लिए जाते हैं। सरकार की छवि धूमिल होती है सो अलग। सरकार को यह भी सूचना मिल रही थी कि सरकारी वकील कोर्ट नहीं जाते हैं और अपने सीनियर से मिलकर उपस्थिति दर्ज करवा लेते हैं। गौरतलब है कि सरकार की ओर से डेढ़ हजार से ज्यादा सरकारी वकील और वादधारक नियुक्त किये गए हैं।

इस मर्ज को दूर करने के लिए ही अपने दूसरे कार्यकाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने न्याय विभाग अपने पास रखा और फौरन काम पर लग गए। उनके निर्देश पर ही प्रमुख सचिव न्याय ने वादधारकों और सरकारी वकीलों से साक्षात्कार का यह सिलसिला शुरू किया है जो आने वाले कुछ दिनों तक चलेगा। मकसद है कि जुगाड़ और पैरवी से सरकारी वकील और वादधारक बने लोगों की छंटाई की जाए जिससे कि अदालत में सरकार के पक्ष की प्रभावी पैरवी हो सके।

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