तीर्थनगरी ऋषिकेश में मौजूद नीलकंठ महादेव मंदिर में अपार आस्था, शिवरात्रि पर उमड़े एक लाख से ज्यादा भक्त
ऋषिकेश। तीर्थनगरी ऋषिकेश में मौजूद नीलकंठ महादेव मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। इस मंदिर में पूजा-अर्चना व जलाभिषेक के लिए पूरे साल श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला जारी रहता है, लेकिन महाशिवरात्रि पर यहां हर साल लाखों की संख्या में शिवभक्त पहुंचते हैं। यहां तक कि कई श्रद्धालु तो शरीर के बल लेटते हुए नीलकंठ मंदिर की दूरी तय करते हैं।
मंगलवार को महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर नीलकंठ महादेव मंदिर में महज आठ घंटे में एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने जलाभिषेक किया। मंदिर में महाशिवरात्रि पर्व को लेकर कुछ दिन पहले से ही श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया था। भगवान के दर्शन पाने के लिए सोमवार रात से ही नीलकंठ मंदिर में श्रद्धालुओं की लंबी कतार लग गई थी।
वहीं मंगलवार की सुबह पूरा क्षेत्र श्रद्धालुओं से खचाखच भर गया था। मंदिर के बाहर पैदल मार्ग पर श्रद्धालुओं की एक किलोमीटर लंबी कतार लगी रही। तड़के चार बजे से दोपहर 12:00 बजे तक नीलकंठ महादेव मंदिर में एक लाख 250 श्रद्धालुओं ने जलाभिषेक कर लिया थे। वहीं नीलकंठ महादेव मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी आवाजाही से कारण नीलकंठ मोटर मार्ग पर दिनभर लंबा जाम लगा रहा। करीब सात किलोमीटर लंबे जाम में पूरे दिन वाहन फंसे रहे। इस दौरान पुलिस को भी खासी मशक्कत करनी पड़ी।
पुराणों में उल्लेख है कि समुद्र मंथन के दौरान कंठ में हलाहल (कालकूट विष) धारण करने के बाद भगवान शिव यहीं आकर नीलकंठ कहलाए। नीलकंठ महादेव मंदिर में भगवान शिव स्वयंभू लिंग स्वरूप में विराजमान हैं। यहां पहुंचने के लिए कई श्रद्धालु मोटर मार्ग के बजाय स्वर्गाश्रम से होकर जाने वाले पैदल मार्ग का उपयोग करते हैं। घने जंगल के बीच करीब 12 किमी लंबा यह पैदल मार्ग खड़ी चढ़ाई से होकर गुजरता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हजारों साल पहले अमृत पाने के लिए देवता और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन में अनेक रत्न निकले थे। समुद्र मंथन से कालकूल विष (हलाहल) भी प्रकट हुआ था, जिसे सृष्टि की रक्षा के लिए भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया। स्कंद पुराण के केदारखंड में उल्लेख है कि हलाहल धारण करने के बाद भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया। विष की ऊष्मा इस कदर तीव्र थी कि उसे शांत करने के लिए भगवान शिव यहां आकर समाधि में लीन हो गए। हजारों सालों की तपस्या के बाद मां पार्वती ने उन्हें समाधि से जगाया था। तब से भगवान शिव यहां पर स्वयंभू लिंग के रूप में विद्यमान हैं। वहीं भगवान शिव द्वारा विष पान करने के बाद ही इस स्थान को नीलकंठ के नाम से जाना गया।