उत्तराखण्डधर्म-संस्कृति

जब चट्टान में अवतरित हुई मां दुर्गा

कोटद्वार/ देहरादून। कोटद्वार राष्ट्रीय राजमार्ग पर खोह नदी के किनारे स्थित माता दुर्गा का मंदिर मंदिर सदियों से लाखों श्रद्धालुओं का आस्था का केंद्र स्थली रहा है। इस सिद्धपीठ को प्राचीन सिद्धपीठों में से एक माना जाता है। कोटद्वार पौड़ी मोटरमार्ग पर सदाबहार वनों व विशालकाय चट्टानों पर  खोह नदी के किनारे दुर्गादेवी का यह प्राचीकालीन मंदिर स्थित है ।  कहा जाता है कि इस स्थान पर माँ दुर्गा पहाड़ में प्रकट हुई थी। मंदिर में देवी माँ के चट्टानों से उभरी एक प्रतिमा भी  है। गुफा के अन्दर एक ज्योति है जो सदैव जलती रहती है | चैत्रीय और शारदीय नवरात्र  के साथ ही हमेशा मां के दर्शन को यहां भक्तों का तांतां लगा रहता है । कहा जाता है कि यहां मां दुर्गा का वाहन बाघ मन्दिर में माता के दर्शन करने आता है,और किसी को हानि पहुँचाए बिना जंगल में चल जाता है। मन्दिर का  नया रूप   राजमार्ग  निर्माण के दौरान एक ठेकेदार ने दिया था।कहा जाता है कि जब ठेकेदार के मजदूर सड़क निर्माण में जुटे हुए थे कई अथक प्रयासों के बावजूद निर्माण कार्य आगे नहीं  बढ़ पाया हो । ठेकेदार निराश हो गया। उसके बाद उसने उस स्थान पर मातारानी का मंदिर बनाने का निर्णय लिया। ठेकेदार ने मंदिर का निर्माण करवाकर मन्दिर में माँ दुर्गा की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की । इसके बाद सड़क का निर्माण कार्य शुरू करवाया तो कार्य में कोई भी अड़चन नहीं आई। माँ दुर्गा को समर्पित इस मंन्दिर को प्राचीनतम सिद्धपिठों में से एक माना जाता है । चैत्रीय व शारदीय नवरात्र पर मंदिर में भक्तों या श्रद्धालु की भीड़ लगी रहती है ।

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