नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की उपासना, जानें पूजन विधि और विशेष मंत्र
नवरात्रि का दूसरा दिन – नवदुर्गा के दूसरे रूप को ब्रह्मचारिणी कहते हैं. नवरात्रि के दूसरे दिन इसी रूप की पूजा की जाती है. जैसा कि नाम से ही पता चल रह है, माता ब्रह्मचारिणी (brahmacharini) ब्रह्म यानि तपस्या का आचरण करने वाली हैं. इनका दूसरा नाम तपस्चारिणी भी है. इस साल नवरात्रि 2 अप्रैल से शुरू हो गए हैं और 3 अप्रैल को ब्रह्मचारिणी मां की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है. लेकिन किसी भी देवी-देवता की पूजा बिना आरती और मंत्र के अधूरी है. ऐसे मे आपको ब्रह्मचारिणी मां की आरती और मंत्रों के बारे में पता होना जरूरी है. आज का हमारा लेख इसी विषय पर है. आज हम आपको अपने इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि ब्रह्मचारिणी मां की आरती (brahmacharini Aarti) और मंत्र क्या हैं. पढ़ते हैं आगे…
- मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र:
या देवी सर्वभूतेषु ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
- मां ब्रह्मचारिणी की आरती:
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।
इस आरती को करने के बाद मां दुर्गा की आरती भी करें….
- दुर्गा आरती
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥
इन नियमों का करें पालन-
- ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- व्रती को काम, क्रोध, लोभ और मोह से दूर रहना चाहिए।
- व्रत करने वाले को झूठ बोलने से बचना चाहिए और सत्य का पालन करना चाहिए।
- व्रत में बार-बार जल पीने से बचना चाहिए और गुटखा, तंबाकू आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।